मान्यता के अनुसार एक समय यह सातों बहनें जंगल गई थीं। वहां पर इन सातों बहनों को एक तिल का दाना मिला, जिसे 6 बहनों द्वारा खाया गया, लेकिन सबसे छोटी बहन को यह तिल का दाना नहीं मिला। इसलिए मेहनी माता अपनी बहनों से नाराज हो गईं। छोटी बहन को मनाने के लिए 6 माताओं द्वारा अपने मुंह से तिल के एक दाने के अलग अलग टुकड़ों को छोटी बहन को खिलाया गया।
तबसे सबसे छोटी बहन को बड़ी का दर्जा प्राप्त हुआ था। इस दौरान मेहनी माता ने अपनी 6 बड़ी बहन बूढ़ी बछवारन, कांडी घटासनी, सोना सिहासन, निशु पाराशरी, बगलामुखी और माता धारा नागण की शक्तियां भी छीन लीं।
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माता मेहनी
यह देवी सभी बदार घाटी की बहनों में से एक हैं। इस माता को ही बड़ी का दर्जा दिया गया, क्योंकि बड़ी बहनों ने तिल का दाना खा लिया था। छोटी वंचित रह गई थीं। माता मेहनी को मनाने के लिए 6 देवियों द्वारा छोटी बहन को बड़ा माना गया।
मां धारा नागण
यह माता बदार घाटी के धार नामक स्थान से लगभग 20 किलोमीटर पैदल चल मंडी अपने अनुयायियों के साथ पहुंची हैं। यह माता जादू टोने को ठीक करने के साथ साथ महामारी से पशुओं की रक्षा करती हैं।
माता बगलामुखी
माता बगलामुखी को बगला रूप में Ptsd जाता है। धन और ऐश्वर्य की देवी इन्हें माना गया है। इनका मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है। इनके प्रांगण में नवरात्रों पर विशेष मेला भी लगता है।
माता निशु पराशरी
माता सोना सिहासन
माता सोना सिंहासन भी मंडी राजपरिवार की एक मुख्य देवी हैं, इनका मंदिर भी बदार घाटी में ही है। यह माता जादू टोने से ग्रसित लोगों का इलाज करती हैं।
माता कांडी घटासनी
शिवा बदार में इस माता का भव्य मंदिर है। यह देवी मंडी शिवरात्रि में बरसों से हिस्सा लेने पहुंचती हैं। इनके क्षेत्र में कब और क्या नया काम होना है। कब उसे करने का मुहूर्त है, देवी के पुजारी द्वारा हर रविवार को बताया जाता है।
माता बूढ़ी बछवारन
इस माता का मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर है। यह अपने अनुयायियों के साथ शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने आती हैं। इनके प्रांगण में हर साल 2 बार मेला लगता है। इन माता को सुख, शांति बनाए रखने वाली माना गया है।
मैहणी माता का यह मन्दिर मण्डी जनपद से 10 -12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंडीगढ़ मनाली नैशनल हाईवे 21 पर सफर कर के घ्राण नामक स्थान से एक लिंक रोड द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है। लिंक रोड पर कुछ सफर तय करने के बाद इस रोड से एक और लिंक रोड मिलता है, जहाँ से मैहणी मन्दिर तक 2 किलोमीटर का सफर है।
मैहणी माता का यह प्राचीन मैहणीधार गाँव के अंतर्गत आता है। गाँव तक सड़क की सुविधा है। गाँव की मुख्या सड़क से मन्दिर तक का लगभग 10 मिनट का सफर है जो पैदल मार्ग से तय करना पड़ता है। बीच बीच में देवदार के नए जंगल हैं जो देखने में काफी सुन्दर हैं। वन विभाग द्वारा नए पेड़ यहाँ भी लगाए जा रहे हैं।
मैहणी माता का यह मन्दिर सैंकड़ो साल पुराना है जिसे देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है। मन्दिर का निर्माण पहाड़ी पेगोडा शैली में किया गया है। मन्दिर की बाहरी और भीतरी दीवारें लकड़ी से ही निर्मित हैं, जिन पर सुन्दर कलाकृतियां उकेरी गयीं हैं। चार मंजिला इस मन्दिर के मध्य में गर्भगृह का निर्माण किया गया है ,इसमें देवी माँ की सुन्दर मूर्ति स्थापित है। दोनों द्वारों की चौखटों पर नाग युगल बनाये गए हैं।
हिमाचल के मन्दिरों में बनाई गयीं ऐसी सुन्दर कला कृतियों को देख कर हर कोई हैरान रह जाता है। यह सब कलाकृतियां पहाड़ी कलाकारों द्वारा पहाड़ी शैली में बनाई गयीं है